प्रदेश की संस्कृति, कला और आस्था अब राष्ट्रीय गौरव


प्रदेश की संस्कृति, कला और आस्था अब राष्ट्रीय गौरव

30 अप्रैल को मध्यप्रदेश की तीन सांस्कृतिक परंपराएं- भील जनजाति का भगोरिया नृत्य, गोंड चित्रकला और नर्मदा परिक्रमा अब भारत की अमूर्त सांस्कृतिक विरासतों की राष्ट्रीय सूची में शामिल हो गई हैं। इससे पहले भोपाल की चार बैत और इंदौर का गेर पहले से इस सूची में थे। अब प्रदेश की कुल 5 परंपराएं इसमें शामिल हैं। इन परंपराओं को यूनेस्को की विश्व अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की टेंटेटिव सूची में भी शामिल किया जा सकेगा।

अभी तक मध्यप्रदेश से सिर्फ सिंहस्थ (कुंभ मेला), उज्जैन ही यूनेस्को सूची में है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इसे गर्व की बात बताया।

अमूर्त सांस्कृतिक विरासत: अमूर्त सांस्कृतिक विरासत वह परंपरा है जो जीवंत होती है। यह हमें पूर्वजों से विरासत में मिलती है और पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ती है। इसमें शामिल होते हैं- मौखिक परंपराएं, लोक कलाएं, रीति-रिवाज, त्योहार और उत्सव, पारंपरिक ज्ञान, लोक शिल्प। यह विरासत लोगों के जीवन, परंपरा और अनुभवों से जुड़ी होती है। वहीं, मूर्त सांस्कृतिक विरासत में भौतिक चीजें आती हैं, जैसे- स्मारक, इमारतें, मूर्तियां या चित्रकृतियां।

मप्र संस्कृति विभाग के प्रमुख सचिव शिवशेखर शुक्ला ने बताया कि इन तीनों विरासतों को सूची में शामिल करने का प्रस्ताव पिछले साल ही भेजा गया था। प्रस्ताव संगीत नाटक अकादमी (एसएनए) को भेजा गया था। एसएनए ने इन परंपराओं को मान्यता देते हुए उन्हें राष्ट्रीय सूची में शामिल कर लिया है।

नर्मदा विश्व की एकमात्र नदी है जिसकी पैदल परिक्रमा की जाती है। नर्मदा की पैदल परिक्रमा अमरकंटक से खंभात की खाड़ी तक होती है। यात्रा मार्ग 2600 किमी लंबा है। गोंड चित्रकला मंडला-डिंडोरी क्षेत्र से उत्पन्न हुई है। इसमें प्रकृति- संस्कृति का गहरा जुड़ाव दिखता है। जनगढ़ सिंह श्याम ने इसे वैश्विक पहचान दिलाई। इसे जीआई टैग भी मिला है। भगोरिया नृत्य झाबुआ-अलीराजपुर की भील जनजाति का पारंपरिक नृत्य है। पारंपरिक वेशभूषा और मांदल, ढोल और अन्य पारंपरिक वाद्य यंत्रों का इसमें उपयोग होता है।

भोपाल की चार बैत और इंदौर का गेर (रंगपंचमी), इस सूची में पहले से थीं। चार बैत’ शायरी की एक ऐसी शैली है। जिसमें इश्क के साथ शौर्य का बखान किया जाता है।




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