जल परिवहन क्षेत्र में
करियर के तेजी से बढ़ते मौके
-डॉ. जयंतीलाल भंडारी
यकीनन जैसे-जैसे जल परिवहन से कारोबार तेजी से बढ़ रहा है, वैसे-वैसे जल परिवहन क्षेत्र में रोजगार और करियर के मौके बढ़ रहे हैं। पीएम गतिशक्ति योजना, नई लॉजिस्टिक नीति और मैरीटाइम इंडिया विजन 2030 के लगातार सफल क्रियान्वयन से जल परिवहन में करियर के मौके बढ़ रहे हैं। यह स्पष्ट है कि जल परिवहन दुनियाभर में माल ढुलाई के लिए वरीयता वाला माध्यम है। यूरोप, अमेरिका, चीन तथा पड़ोसी बांग्लादेश में काफी मात्रा में माल की ढुलाई अंतर्देशीय जल परिवहन तंत्र से हो रही है और उनके कारण रोजगार के मौके ऊँचाई पर हैं। अब जिस तरह भारत की अर्थव्यवस्था को 2027 में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और 2047 तक देश को विकसित देश बनाने के जो लक्ष्य रखे गए हैं, उनके पूरे किए जाने में समुद्री परिवहन अहम भूमिका निभाएगा, ऐसे में जल परिहवन में करियर के मौके और बढ़ेंगे। यही कारण है कि जल परिवहन से संबंधित विभिन्न कोर्सों की अहमियत बढ़ गई है।
परिवहन की नई जीवनरेखा जल
परिवहन में बढ़ेंगे रोजगार
गौरतलब है कि सरकार नई नीतियों के साथ जल परिवहन को भारत के परिवहन की जीवन रेखा बनाने की डगर पर आगे बढ़ती हुई दिखाई दे रही है। जिन जल मार्गों को प्राकृतिक पथ कहा जाता है वे कभी भारतीय परिवहन की जीवन रेखा हुआ करते थे। लेकिन समय के साथ आए बदलावों और परिवहन के आधुनिक साधनों के चलते बीती एक शताब्दी में भारत में जल परिवहन क्षेत्र बेहद उपेक्षित होता चला गया। भारत के पास 7500 किलोमीटर तटीय क्षेत्र है। जबकि 14,500 किमी नदी मार्ग है। भारत की समुद्री तटरेखा 9 राज्यों और 4 केंद्र शासित प्रदेशों को समाहित करती है। देश के विशाल समुद्र तटों पर, 13 प्रमुख बड़े और 212 छोटे बंदरगाह हैं। बड़े बंदरगाहों में पूर्वी तट पर हल्दिया, पारादीप, विशाखापट्टनम, कामराज, चेन्नई, तूतीकोरीन और पोर्ट ब्लेयर हैं। पश्चिमी तट पर कोचीन, न्यू मैंगलोर, मोरमुगाँव, जवाहरलाल नेहरू, कांडला और मुंबई बंदरगाह हैं। भारतीय बंदरगाह अपनी समृद्ध ऐतिहासिक विरासत और वैश्विक व्यापार के लिए शताब्दियों से महत्वपूर्ण बने हुए हैं और बंदरगाहों से विदेश व्यापार लगातार बढ़ता गया है। इस समय भारत का मात्रा के हिसाब से 95 फीसदी और मूल्य के हिसाब से 70 फीसदी व्यापार बंदरगाहों के माध्यम से होता है।
बंदरगाहों के आधुनिकीकरण
और बढ़ते समुद्री व्यापार से बढ़े मौके
इस समय देश के वैश्विक व्यापार को बढ़ाने और निर्यात के ऊँचे लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए बंदरगाहों के आधुनिकीकरण के साथ उन्हें समुद्री व्यापार के लिए प्रतिस्पर्धी बनाने की रणनीति के साथ तेजी से आगे बढ़ा जा रहा है। विगत 30 अगस्त,2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाराष्ट्र के पालघर जिले में 76,000 करोड़ रुपये की लागत वाली वधावन बंदरगाह परियोजना की आधारशिला रखी। इस मौके पर प्रधानमंत्री ने कहा कि वधावन देश का सबसे बड़ा कंटेनर बंदरगाह होगा। इस परियोजना का उद्देश्य भारत में एक विश्व स्तरीय समुद्री प्रवेश द्वार स्थापित करना है, जो बड़े कंटेनर जहाजों की ज़रूरतों को पूरा करने में अहम भूमिका निभाए। उन्होंने कहा कि वधावन बंदरगाह भारत के सबसे बड़े गहरे पानी के बंदरगाहों में से एक होगा। यह अंतरराष्ट्रीय नौवहन मार्गों को सीधा संपर्क प्रदान करेगा, जिससे पारगमन समय और लागत कम होगी। यह बंदरगाह भारत की समुद्री कनेक्टिविटी को बढ़ाएगा और वैश्विक व्यापार केंद्र के रूप में भारत की स्थिति को और मजबूत करेगा।
निसंदेह अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रवेश द्वार होने के कारण भारतीय बंदरगाहों ने समुद्री (तटीय) राज्यों को देश में औद्योगिक विकास के मद्देनजर पसंदीदा स्थल बना दिया है। परिवहन संबंधी न्यूनतम बाधाओं के साथ-साथ लॉजिस्टिक लागत में कमी बंदरगाहों के निकटवर्ती क्षेत्रों में औद्योगिक विकास को बढ़ाने वाला प्रमुख कारण है। बिजली, इलेक्ट्रॉनिक्स, परिधान, चमड़ा, फर्नीचर, रिफाइनरी और पेट्रोकेमिकल्स, सीमेंट, स्टील और खाद्य प्रसंस्करण जैसे उद्योग बंदरगाह क्षेत्रों में तेजी से विकास कर रहे हैं। इसी के चलते महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, गुजरात, आंध्र प्रदेश, केरल जैसे राज्यों के द्वारा देश की विकास गाथा में महत्वपूर्ण योगदान दिया जा रहा है। यह बात भी महत्वपूर्ण है कि विशेष आर्थिक क्षेत्रों (एसईजेड) की स्थापनाओं में बंदरगाहों की अहमियत स्पष्ट दिखाई दे रही है। देश में अधिसूचित कोई 377 एसईजेड में से करीब 240 एसईजेड समुद्री राज्यों में स्थित हैं। अदानी पोर्ट लिमिटेड, देश का सबसे बड़ा एसईजेड गुजरात के कच्छ जिले में मुंद्रा बंदरगाह पर स्थित है।
समुद्री विकास के
बहुआयामी अभियानों से रोजगार की नई दिशाएं
निश्चित रूप से पिछले एक दशक में भारत अपने बंदरगाहों को समुद्री व्यापार की धुरी बनाने के लिए लगातार रणनीतिक रूप से आगे बढ़ रहा है। निजी बंदरगाहों को प्रोत्साहन दिया गया है। भारत कार्गो और जहाजों को संभालने में अपनी दक्षता में सुधार करने के उद्देश्य से अपने बंदरगाहों का तेजी से आधुनिकीकरण कर रहा है। वर्ष 2015 में सागरमाला कार्यक्रम के लॉन्च होने के बाद से बंदरगाह के नेतृत्व वाले विकास को महत्वपूर्ण प्रोत्साहन मिला है। मार्च 2022 तक सागरमाला कार्यक्रम के लिए 5.40 लाख करोड़ रुपए की निर्धारित लागत वाली कुल 802 परियोजनाओं में से 1.12 लाख करोड़ रुपये की 221 परियोजनाएं पहले ही पूरी हो चुकी हैं, जबकि 4.28 लाख करोड़ रुपये की 581 परियोजनाएं विकास के विभिन्न चरणों में हैं। वर्ष 2021 में लॉन्च किए गए पीएम गति-शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान के माध्यम से विभिन्न बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को गति प्रदान की जा रही है। पीएम गति-शक्ति मल्टी मॉडल कनेक्टिविटी परियोजनाओं की समन्वित योजना और निष्पादन पर केंद्रित है जिसमें बंदरगाह भी शामिल हैं। ज्ञातव्य है निजी भागीदारी बंदरगाह आधारित विकास की मुख्य रणनीति है। इस संबंध में 100 करोड़ रुपये से अधिक निवेश की सभी परियोजनाएं नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन (एनआईपी) के तहत सूचीबद्ध हैं।
यह बात भी महत्वपूर्ण है कि जो समुद्री राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स पोर्टल (एनएलजी) जनवरी, 2023 में शुरू हुआ है, वह एक ऐसा वन-स्टॉप प्लेटफ़ॉर्म है जो लॉजिस्टिक्स समुदाय के सभी हितधारकों को आईटी के माध्यम से जोड़ता है। जिसका उद्देश्य लागत और समय की देरी को कम करते हुए दक्षता और पारदर्शिता में सुधार करना है। सरकार ने बंदरगाह निर्माण और रखरखाव परियोजनाओं के लिए स्वचालित मार्ग के तहत 100 प्रतिशत तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की अनुमति दी हुई है। इसके अलावा, 11.8 अरब डॉलर के योजनाबद्ध आउटले के साथ समुद्री क्षेत्र को विकसित करने के लिए राष्ट्रीय समुद्री विकास कार्यक्रम (एनएमडीपी) भी अत्यधिक लाभप्रद है। अब मेरीटाइम इंडिया मिशन 2030 के तहत बंदरगाहों के विकास और लॉजिस्टिक लागत घटाकर समुद्री अर्थव्यवस्था से देश को लाभांवित करने का नया अध्याय आगे बढ़ रहा है।
इन सबके साथ-साथ वैश्विक समुद्री भारत शिखर सम्मेलन (जीएमआईएस) के दौरान तय किए गए व्यापक रोडमैप के साथ समुद्री अमृतकाल विजन 2047 भारत के समुद्री क्षेत्र को नई ऊँचाई देने के लिए तैयार है। जिसमें 80,000 लाख करोड़ रुपये का निवेश शामिल है। इसमें रसद, बुनियादी ढांचे और नौवहन में आकांक्षाओं को शामिल किया गया है, यह भारत की 'ब्लू इकोनॉमी' का आधार स्तम्भ है। इस तरह बंदरगाहों के विकास और समुद्री व्यापार बढ़ाने के अभियानों से इस क्षेत्र में रोजगार के बहुआयामी मौके बढ़ते जा रहे हैं।
जल परिवहन में बड़े निवेश
से बढ़ेंगे रोजगार
निसंदेह पीएम गतिशक्ति योजना और नई लॉजिस्टिक नीति के तहत भारी निवेश के कारण अब देश के विशाल जल मार्ग और विशाल नदियों के कारण जल परिवहन के तहत माल ढुलाई संबंधी जरूरतों की पूर्ति के लिए बहुत संभावनाएँ हैं तथा रोजगार के भी अधिक अवसर हैं। देश के अधिकांश बिजलीघर कोयले की कमी से मुश्किल में रहते हैं। सड़क और रेल परिवहन से समय पर कोयला नहीं पहुँच पाता। ऐसे में अंतर्देशीय जलमार्गों के द्वारा कोयला ढुलाई की नियमित तथा किफायती संभावनाएँ हैं। हमारी कई बड़ी विकास परियोजनाएँ राष्ट्रीय जलमार्गों के नजदीक साकार होने जा रही हैं। बहुत से नए कारखाने और पनबिजली इकाइयाँ इन इलाकों में खुल चुके हैं। इनके निर्माण में भारी भरकम मशीनरी की सडक़ से ढुलाई आसान काम नहीं है। इसमें जल परिवहन की अहम भूमिका है। अनाज और उर्वरकों की बड़ी मात्रा में ढुलाई जल परिवहन से संभव है। अब पीएम गतिशक्ति योजना के तहत असाधारण निवेश के मद्देनजर यह कहा जा सकता है कि भविष्य में इस क्षेत्र में और अधिक रोजगार के अवसर निर्मित होंगे।
जल परिवहन में करियर के
विभिन्न क्षेत्र
निश्चित रूप से जल परिवहन के तहत करियर के बहुआयामी मौके हैं। जल परिवहन के अन्तर्गत वाणिज्यिक कामों से लेकर मैरीन इंजीनियरिंग क्षेत्र में रोजगार के मौके बूम की स्थिति में है। जल परिवहन के तहत मैरीन इंजीनियरों, बंदरगाह प्रचालन इंजीनियरों, लॉजिस्टिक्स एवं नौवहन विशेषज्ञों और इन क्षेत्रों से संबंधित विभिन्न कार्यों के लिए कर्मचारियों और अधिकारियों की भारी माँग है। सरकारी क्षेत्र तथा निजी क्षेत्र में जल परिवहन डिजाइनरों, जल परिवहन योजनाकारों, जल परिवहन प्रचालन विशेषज्ञों आदि की मांग बढ़ रही है। निजी क्षेत्र में कार्यरत जल परिवहन कंपनियों में भी रोजगार के उजले अवसर विद्यमान हैं।
गौरतलब है कि नौसेना के आर्किटेक्ट नाव का ढांचा या संरचना बना सकते हैं, लेकिन नाव की सभी आंतरिक शक्ति और मशीनरी प्रणालियों को डिजाइन करने के लिए मरीन इंजीनियरों की आवश्यकता होती है। मरीन इंजीनियरों के बिना, नाव में कोई इंजन, इलेक्ट्रॉनिक्स, हाइड्रोलिक्स, लाइटिंग, रेफ्रिजरेशन या नियंत्रण नहीं होगा। एक अच्छा मरीन इंजीनियर बनने के लिए, आपको बहुत बहुमुखी, रचनात्मक और सीखने के लिए खुला होना चाहिए। मरीन इंजीनियरिंग एक रोमांचक करियर है क्योंकि हर नाव या जहाज अलग होता है और आप जहाज पर हर सिस्टम के लिए जिम्मेदार होंगे। लगभग हर नाव को इंजन, प्रोपेलर, स्टीयरिंग, ट्रांसमिशन, पंप, इलेक्ट्रिकल सिस्टम आदि की आवश्यकता होती है। नौसेना इंजीनियर नौसेना के जहाजों पर काम करते हैं। नौसेना का जहाज दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे जटिल इंजीनियर प्रणालियों में से एक है।
इसमें कोई दो मत नहीं है कि महासागर इंजीनियरिंग में भी रोजगार के मौके बढ़े है। महासागरीय वातावरण में प्रत्येक उपकरण, प्रत्येक युक्ति और प्रत्येक प्रक्रिया महासागर इंजीनियरों की रचना और जिम्मेदारी है। महासागरीय वातावरण बहुत संक्षारक, अस्थिर और अक्सर अप्रत्याशित होता है। वे परिवहन प्रणाली विकसित करते हैं, जलमार्गों के लिए नए उपयोगों की योजना बनाते हैं, गहरे पानी के बंदरगाहों को डिज़ाइन करते हैं और भूमि और जल परिवहन प्रणालियों और विधियों को एकीकृत करते हैं।
जल परिवहन में करियर के
जरूरी स्किल्स
चूँकि जल परिवहन एक विशेषीकृत क्षेत्र है तथा इसमें तकनीकी कौशल की आवश्यकता होती है ऐसे में इस क्षेत्र में करियर के लिए बंदरगाह प्रचालन, लॉजिस्टिक्स एवं नौवहन आदि से संबंधित क्षेत्रों में रुचि और दक्षता की अहमियत होती है। साहस, आत्मविश्वास, अपने दायित्वों के प्रति जागरूक तथा चुनौतियों का सामना करने में सजग व सशक्त रहने वाले युवाओं के लिए जल परिवहन के क्षेत्र में अच्छे अवसरों की कोई कमी नहीं है।
जल परिवहन का कौनसा
पाठ्यक्रम चुने
जल परिवहन के क्षेत्र में करियर बनाने के लिए विभिन्न विशेषज्ञता वाले पाठ्यक्रमों हेतु शैक्षणिक योग्यता भिन्न-भिन्न होती है। जल परिवहन से संबंधित लॉजिस्टिक, बंदरगाह प्रचालन, नौवहन आदि कोर्स देश के विभिन्न मैरी टाइम इंस्टिट्यूट, शिपयाई कंपनियों और मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट के द्वारा संचालित होते हैं। सामान्यतया 12वीं के बाद जल परिवहन से संबंधित पाठ्यक्रमों की ओर कदम बढ़ाए जा सकते है। ऐसे में जिन युवाओं की रुचि, योग्यता एवं क्षमता जल परिवहन के क्षेत्र में करियर बनाने की हो, वे अपने अनुरूप उपयुक्त रोजगारोन्मुखी कोर्स का चयन करके जल परिवहन के क्षेत्र में अच्छे करियर की डगर पर आगे बढ़ सकते हैं।
डॉ. जयंतीलाल भंडारी ( विख्यात करियर काउंसलर)
111, गुमास्ता नगर, इंदौर-9 (फोन- 0731 2482060, 2480090)
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