मध्यप्रदेश के न्यायिक अधिकारियों की सेवानिवृत्ति आयु 61 वर्ष
सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण आदेश
20 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश के न्यायिक अधिकारियों की सेवानिवृत्ति आयु 60 से बढ़ाकर 61 वर्ष कर दी। इस फैसले से राज्य के न्यायिक अधिकारियों को बड़ी राहत मिली है, क्योंकि इससे उन्हें सेवा में एक अतिरिक्त वर्ष प्राप्त होगा। यह कदम न्यायिक प्रणाली में अनुभव एवं विशेषज्ञता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
पीठ की टिप्पणियाँ
प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई, जस्टिस प्रसन्ना बी. वराले और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ ने यह अंतरिम आदेश पारित किया। सुनवाई के दौरान पीठ ने तेलंगाना हाई कोर्ट के समान फैसले का उल्लेख भी किया।
पीठ ने कहा कि जब राज्य सरकार स्वयं सेवानिवृत्ति आयु बढ़ाने को तैयार थी, तो न्यायिक अधिकारियों को राहत देने से क्यों इंकार किया जाना चाहिए? न्यायिक अधिकारियों और राज्य के अन्य सरकारी कर्मचारियों का वेतन एक ही खजाने से आता है।
राज्य सरकार के अन्य कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति आयु पहले से ही 62 वर्ष है, जबकि न्यायिक अधिकारियों की आयु 60 वर्ष थी। अब जिला अदालत के जजों की सेवानिवृत्ति आयु 61 वर्ष कर दी गई है, जबकि हाई कोर्ट के जज 62 वर्ष में सेवानिवृत्त होते हैं।
कानूनी पृष्ठभूमि और दलीलें
सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर अंतिम सुनवाई चार सप्ताह बाद रखने का निर्देश दिया है। एमपी हाई कोर्ट की ओर से पेश वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणन ने जिला अदालत के जजों की सेवानिवृत्ति आयु बढ़ाने के विरोध में दलीलें पेश कीं।
इसके पहले 27 अक्टूबर को शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार और हाई कोर्ट रजिस्ट्री से जवाब मांगा था, जिसमें सेवानिवृत्ति आयु 60 से 61 वर्ष करने से इनकार को चुनौती दी गई थी।
26 मई को प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई की अगुआई वाली पीठ ने कहा था कि मध्यप्रदेश में न्यायिक अधिकारियों के लिए सेवानिवृत्ति आयु 61 वर्ष करने में कोई कानूनी बाधा नहीं है।