इस समय देश में घरेलू बचत में लगातार कमी आने का चिंताजनक रुझान दिखाई दे रहा है। घरेलू बचत किसी व्यक्ति की आय की वह शेष राशि है, जो उपभोग आवश्यकताओं और विभिन्न वित्तीय देनदारियों के भुगतान के बाद बचती है। घरेलू बचत को बैंक और गैर बैंक जमा, जीवन बीमा निधि, भविष्यनिधि और पेंशननिधि, पोस्ट ऑफिस की छोटी बचत योजनाओं तथा अन्य वित्तीय उपकरणों में निवेश किया जाता है। यदि हम घरेलू बचत संबंधी आँकड़ों को देखें तो पाते हैं कि जो घरेलू बचत वर्ष 2006-07 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 18 फीसदी के स्तर थी, वह वर्ष प्रतिवर्ष घटते हुए वर्ष 2022-23 में जीडीपी के 5.2 फीसदी स्तर पर आ गई और अब यह पिछले पांच दशकों में सबसे कम स्तर पर है।
स्थिति यह है कि घरेलू बचत में गिरावट सरकार की भी चिंता का कारण बन गई है। राष्ट्रीय लघु बचत प्राप्तियों के लिए इस वित्त वर्ष 2024-25 के अंतरिम बजट में 14.77 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था। लेकिन 23 जुलाई को पेश किए गए वर्ष 2024-25 के पूर्ण बजट में लघु बचतों से प्राप्ति के अनुमान को घटाकर 14.20 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया है। चूँकि सरकार अपने राजकोषीय घाटे को पाटने के लिए लघु बचत योजनाओं के तहत संग्रह राशि का भी उपयोग करती है, अतएव घटती हुई घरेलू बचत के खतरे को भांपते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में 10 अगस्त को रिजर्व बैंक के निदेशक मंडल की बैठक में कहा कि बैंकों के द्वारा जमा राशि बढाने के लिए ऐसी आकर्षक ब्याज योजना लाई जानी चाहिए, जिससे बैंकों में सेविंग्स की धनराशि में तेज इजाफा हो सके।
निसंदेह शताब्दियों से भारत एक ऐसा देश रहा है जहां लोग कमाई का एक हिस्सा भविष्य के लिए घरेलू बचत के रूप में बचाकर रखते रहे हैं। लेकिन अब इस बचत की प्रवृत्ति में बड़ा बदलाव दिखाई दे रहा है। लोगों के द्वारा आवास, वाहन, शिक्षा तथा अच्छे आरामदायक जीवन के लिए विभिन्न प्रकार के कर्ज लगातार बढ़ाए जा रहे हैं। जहाँ परिवारों की वित्तीय देनदारियां बढ़ने से घरेलू बचत सीधे तौर पर कम हुई है, वहीं आय के एक हिस्से का इस्तेमाल विभिन्न प्रकार के ऋणों के ब्याज के भुगतान के लिए भी किए जाने से घरेलू बचत कम हुई है। यह बात भी महत्वपूर्ण है कि देश में लघु बचत योजनाओं के तहत जो 40 करोड़ से अधिक बचतकर्ता हैं, उनके द्वारा भी विभिन्न लघु बचत योजनाओं में तुलनात्मक रूप से कम ब्याज मिलने के कारण निवेश में कमी आई है। प्रमुख रूप से राष्ट्रीय बचत प्रमाणपत्र (एनएससी), लोक भविष्य निधि (पीपीएफ), किसान विकास पत्र (केवीपी) और सुकन्या समृद्धि खाता जैसी अन्य योजनाओं के तहत कम निवेश प्राप्त हो रहा है।
इसमें कोई दो मत नहीं है कि देश में बदली हुई आयकर व्यवस्था के कारण भी आयकरदाताओं के द्वारा की जाने वाली घरेलू बचत में कमी आ रही है। इस समय देश में आयकर भुगतान की पुरानी और नई दो कर रिजीम हैं। जहाँ पुरानी कर रिजीम में बचत और निवेश के लिए प्रोत्साहन हैं, वहीं नई कर रिजीम में बचत के वैसे प्रोत्साहन नहीं हैं। इस समय ज्यादातर आयकरदाता नई कर रिजीम अपना रहे हैं। ज्ञातव्य है कि इस वर्ष 31 जुलाई तक आयकर आकलन वर्ष 2024-25 के लिए दाखिल किए गए कुल 7.28 करोड़ आईटीआर में से नई कर रिजीम के तहत 5.27 करोड़ रिटर्न दाखिल किए गए हैं। वहीं पुरानी कर रिजीम में दाखिल रिटर्न की संख्या 2.01 करोड़ है। इस प्रकार लगभग 72 प्रतिशत करदाताओं ने नई कर व्यवस्था को चुना है। स्पष्ट है कि नई कर व्यवस्था से बचत व निवेश की जगह उपभोग खर्च बढ़ाने की प्रवृत्ति को अधिक प्रोत्साहन मिल रहा है। घरेलू बचत में कमी का एक कारण देश में महिलाओं के द्वारा उनके पास आने वाले धन का उपयुक्त निवेश नहीं किया जाना भी है राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) की रिपोर्ट के मुताबिक मार्च 2023 तक देश की बैकों में कुल 252 करोड़ व्यक्तिगत खातों में से हर तीसरा खाता महिला के नाम पर है, लेकिन बैंकों में जमा कुल 187 लाख करोड़ रुपए में से सिर्फ 20 फीसदी ही महिलाओं खातों में जमा हैं।
ऐसा नहीं है कि घरेलू बचत में कमी का कारण देश में लोगों की आय में कमी आना है। वस्तुतः भारत में प्रतिव्यक्ति आय तेजी से बढ़ रही है। 10 वर्ष पहले वर्ष 2014-15 में जो प्रति व्यक्ति आय 86,647 रुपए थी, वह 2023-24 में करीब 2.28 लाख रुपए के स्तर पर पहुँच गई है। इस तरह तेजी से बढ़ी आय के साथ अब बड़ी संख्या में लोग अपनी बचत का ऐसी जगह पर निवेश कर रहे है, जहां उनको ज्यादा ब्याज और ज्यादा रिटर्न मिल रहा है। लोगों की बचत का तेज प्रवाह शेयर बाजार म्युचुअल फंड, रियल एस्टेट, महंगे वाहनों, सोने एवं बहुमूल्य धातुओं की खरीदी और आरामदायक व विलासिता के सामानों की ओर बढ़ रहा है। देश के छलांगे लगाकर बढ़ते हुए शेयर बाजार में भी तेज रिटर्न मिल रहा है। 10 वर्ष पहले जो सेंसेक्स 25 हजार से स्तर पर था, आज वह 80 हजार के उपर है। जुलाई 2024 में भारतीय शेयर बाजार का आकार 5.5 ट्रिलियन डॉलर हो गया है और भारत का शेयर बाजार दुनिया का चौथा सबसे बड़ा शेयर बाजार है। बड़ी संख्या में लोगों के कदम म्युच्यल फंड की ओर बढ़े हैं। जून 2024 तक म्युच्यल फंड के लिए डीमैट खातों की संख्या आश्चर्यजनक रूप से बढ़कर 16.2 करोड़ हो गई है। विभिन्न आर्थिक एवं वित्तीय संगठनों की रिपोर्टों में भी इस बात का विश्लेषण किया जा रहा है कि लोगों को घरेलू बचत की योजनाओं तथा बैंकों में बचत की धनराशि जमा करने से मिलने वाले रिटर्न की तुलना में शेयर बाजार, म्यूच्युल फंड और अन्य भौतिक सम्पत्तियों में निवेश करने से अधिक रिटर्न मिल रहा है। अतएव घरेलू बचत में कमी आ रही है।इसमें कोई दो मत नहीं है कि घरेलू बचत को व्यक्ति की आर्थिक मुश्किलों के बीच सबसे पहला और सबसे विश्वसनीय वित्तीय साथी माना जाता है। ऐसे में घरेलू बचत के घटने की स्थिति चिंताजनक है, लेकिन घरेलू बचत का घटना किसी वित्तीय संकट की आहट नहीं है। रिजर्व बैंक के मुताबिक देश में परिवारों की वित्तीय देनदारियों में वृद्धि के बावजूद, परिवारों की बैलेंसशीट बेहतर बनी हुई है। मार्च 2023 के अंत में परिवारों की वित्तीय संपत्तियां उनकी देनदारियों की तुलना में 2.7 गुना थीं। भारतीय परिवारों का ऋण सेवा बोझ यानी आय के प्रतिशत के रूप में ब्याज का भुगतान मार्च 2021 में 6.9 प्रतिशत से घटकर मार्च 2023 में 6.7 प्रतिशत रह गया, जो वैश्विक स्तर पर भी सराहनीय है।
हम उम्मीद करें कि 10 अगस्त को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण और रिजर्व बैंक के द्वारा बैंकों को तत्परतापूर्वक घरेलू बचतों के निवेश को आकर्षक और जोखिम रहित बनाने के लिए जो दिशा निर्देश दिए गए हैं, उनके मद्देनजर सभी बैंक अपनी बचत योजनाओं को आकर्षक बनाएंगे। बैंकों के द्वारा कुछ इनोवेटिव और आकर्षक पोर्टफोलियो लाए जाएँगे और जमा प्राप्त करने के नए बाजार तलाशे जाएंगे। हम उम्मीद करें कि वित्त मंत्रालय के द्वारा तत्परतापूर्वक घरेलू बचत योजनाओं की ब्याज दरों में बदलाव हेतु समीक्षा करके ब्याज दरों में उपयुक्त वृद्धि की जाएगी। निश्चित रूप से ऐसे रणनीतिक प्रयासों से घटती हुई घरेलू बचत में वृद्धि की जा सकेगी और इससे आम आदमी के परिवारों की मुस्कुराहट बढ़ाते हुए अर्थव्यवस्था के लिए भी अधिक निवेश का प्रबंधन किया जा सकेगा।