समृद्धि के 11 साल: अब देश में 10 करोड़ परिवार सालाना 10 लाख रुपये से अधिक कमा रहे हैं


समृद्धि के 11 साल: अब देश में 10 करोड़ परिवार सालाना 10 लाख रुपये से अधिक कमा रहे हैं

समृद्धि के 11 साल: अब देश में 10 करोड़ परिवार सालाना 10 लाख रुपये से अधिक कमा रहे हैं

भारत की अर्थव्यवस्था तेजी से उस दौर में प्रवेश कर रही है, जहां आम नागरिक की आय, खर्च करने की क्षमता और उपभोग पैटर्न में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। फ्रैंकलिन टेम्पलटन की नवीनतम रिपोर्ट बताती है कि 2031 तक देश की प्रति व्यक्ति आय ₹4.63 लाख तक पहुंच सकती है। यह संकेत है कि भारत अब “लो इनकम” से “आकांक्षा-प्रेरित अर्थव्यवस्था” (Aspirational Economy) की दिशा में बढ़ चुका है।

अब 10 करोड़ परिवारों की सालाना आय ₹10 लाख से अधिक

रिपोर्ट के अनुसार, इस साल के अंत तक भारत में ₹10 लाख से अधिक सालाना आय वाले परिवारों की संख्या 10 करोड़ हो जाएगी। वर्ष 2013 में ऐसे परिवारों की संख्या केवल 6 करोड़ थी। यानी सिर्फ एक दशक में 4 करोड़ नए परिवार इस आर्थिक वर्ग में पहुंचे हैं। अब ये परिवार देश की कुल खपत का लगभग 40% हिस्सा बनाते हैं।

खपत में आने वाला है जबरदस्त उछाल

विश्लेषकों के मुताबिक, आय में वृद्धि का सीधा असर खपत पर पड़ता है। आने वाले वर्षों में कार, मकान, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, एफएमसीजी और लक्जरी ब्रांड्स की बिक्री में तेज वृद्धि देखने को मिलेगी।

2010 से 2024 के बीच भारत की प्रति व्यक्ति आय लगभग दोगुनी होकर ₹2.41 लाख हो चुकी है। अगर यही आर्थिक रफ्तार बनी रही तो 2031 तक यह ₹4.63 लाख को पार कर जाएगी। इसका अर्थ है कि औसतन हर भारतीय के पास पहले से दोगुनी खर्च करने की क्षमता होगी, जिससे प्रीमियम उत्पाद, यात्रा, स्वास्थ्य सेवाएं और मनोरंजन जैसे क्षेत्रों में निवेश बढ़ेगा।

भारत बन रहा है आकांक्षा-प्रेरित अर्थव्यवस्था

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत अब केवल “जीविका-आधारित” नहीं बल्कि “आकांक्षा-आधारित अर्थव्यवस्था” बन चुका है। लोग अब जरूरी जरूरतों से आगे जाकर अपने जीवन स्तर को बेहतर बनाने पर खर्च कर रहे हैं।

इसी वजह से 2024 से 2030 के बीच भारत की जीडीपी में 11% कंपाउंड ग्रोथ रेट (CAGR) की संभावना जताई गई है। तब तक देश की कुल अर्थव्यवस्था का आकार ₹644 लाख करोड़ तक पहुंच सकता है, जिसमें घरेलू खपत की हिस्सेदारी 60% से अधिक होगी।

भारत बनेगा दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार

रिपोर्ट के मुताबिक, अगले वर्ष तक भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार बन सकता है। 2013 में जहां घरेलू खपत ₹88 लाख करोड़ थी, वहीं 2024 में यह बढ़कर ₹185 लाख करोड़ हो गई है — जो अमेरिका, चीन और जर्मनी की तुलना में कहीं तेज गति है।

सितंबर 2025 में भारतीय निवेशकों ने ₹29,361 करोड़ की राशि एसआईपी (Systematic Investment Plan) के रूप में म्यूचुअल फंड्स में निवेश की। पांच साल पहले यही आंकड़ा केवल ₹10,351 करोड़ था। यह दिखाता है कि अब निवेश आम भारतीय की दिनचर्या का हिस्सा बन चुका है।

ग्रामीण खर्च और अवसरों में बढ़ोतरी

ग्रामीण इलाकों में प्रति व्यक्ति मासिक खर्च 2012 के ₹1,429 से बढ़कर ₹3,774 हो गया है। यह बदलाव न केवल उपभोग का भूगोल बदल रहा है बल्कि रोजगार और कारोबार के नए अवसर भी पैदा कर रहा है।

प्रीमियम उत्पादों की बढ़ती मांग

2020 में जहां एफएमसीजी बाजार में प्रीमियम उत्पादों की हिस्सेदारी 20% थी, वहीं 2024 में यह बढ़कर 30-35% हो गई है। विशेषज्ञ मानते हैं कि 2025 तक यह बाजार ₹5 लाख करोड़ का हो जाएगा।

अर्थव्यवस्था के भविष्य का संकेत

अर्थशास्त्रियों का कहना है कि यह दौर भारत की अर्थव्यवस्था के लिए निर्णायक साबित हो सकता है। आय में यह बढ़ोतरी केवल आंकड़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारत को उपभोग-प्रधान वैश्विक ताकत के रूप में स्थापित करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।

2031 तक अगर यही रफ्तार बनी रही, तो भारत न केवल दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनेगा, बल्कि दुनिया के सबसे बड़े ‘स्पेंडिंग मिडल क्लास’ का घर भी होगा।




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