मलक्का स्ट्रेट में भारत की गश्त को सिंगापुर का मिला समर्थन
4 सितंबर को भारत और सिंगापुर के बीच मलक्का स्ट्रेट में संयुक्त गश्त को लेकर एक अहम समझौता हुआ है। इसके साथ ही भारत, मलेशिया और इंडोनेशिया से भी इस क्षेत्र की निगरानी को लेकर बातचीत कर रहा है। मलक्का स्ट्रेट को चीन की सबसे कमजोर नस माना जाता है। यदि इसे ब्लॉक किया जाए, तो चीन की व्यापारिक आपूर्ति एक सप्ताह में ठप हो सकती है।
भारत और सिंगापुर का रणनीतिक समझौता
भारत और सिंगापुर ने तय किया है कि वे मलक्का स्ट्रेट में संयुक्त रूप से गश्त करेंगे। यह वही समुद्री क्षेत्र है जिसके माध्यम से चीन अपना अधिकांश व्यापार करता है। इसे चीन का 'चिकन नेक' भी कहा जाता है। यह संकीर्ण जलमार्ग बंगाल की खाड़ी और हिंद महासागर को जोड़ता है।
नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सिंगापुर के प्रधानमंत्री लॉरेंस वोंग की उच्च स्तरीय बैठक के बाद जारी संयुक्त बयान में कहा गया कि “सिंगापुर, भारत की मलक्का स्ट्रेट्स पेट्रोल में दिलचस्पी की सराहना करता है।”
मलक्का स्ट्रेट का सामरिक महत्व
मलक्का स्ट्रेट दुनिया के सबसे व्यस्त और रणनीतिक समुद्री मार्गों में से एक है, जो हिंद महासागर और प्रशांत महासागर को जोड़ता है। चीन की ऊर्जा आपूर्ति और विदेशी व्यापार इस मार्ग पर बहुत हद तक निर्भर करता है। यही वजह है कि भारत की यहां मौजूदगी चीन के लिए चिंता का विषय है।
वर्तमान में सिंगापुर, मलेशिया और इंडोनेशिया इस मार्ग की निगरानी करते हैं। भारत के शामिल होने से इस क्षेत्र की सुरक्षा और भी मजबूत हो जाएगी और चीन पर दबाव बढ़ेगा।
चीन के लिए मलक्का स्ट्रेट क्यों है 'चिकन नेक'
चीन अपनी 80 प्रतिशत ऊर्जा आपूर्ति इसी मार्ग से करता है। यह सबसे तेज और किफायती रास्ता है जो मध्य एशिया और अफ्रीका से ऊर्जा चीन तक पहुंचाता है। इसके अलावा, चीन का बड़ा हिस्सा विदेशी व्यापार का भी इसी रास्ते से गुजरता है।
मलक्का स्ट्रेट की चौड़ाई एक स्थान पर केवल 2.7 किलोमीटर है, जिससे युद्ध की स्थिति में इसे आसानी से ब्लॉक किया जा सकता है। चीन ने विकल्पों पर काम किया है जैसे ग्वादर, म्यांमार और कंबोडिया के माध्यम से, लेकिन अभी भी मलक्का स्ट्रेट उसका मुख्य मार्ग बना हुआ है।