संस्था से बड़ा कोई नहीं: मेहली मिस्त्री ने रतन टाटा के मूल्यों के साथ ली विदाई
मेहली मिस्त्री ने औपचारिक रूप से टाटा ट्रस्ट्स से अलग होने की घोषणा कर दी है। उन्होंने ट्रस्ट के चेयरमैन नोएल टाटा को एक पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने कहा है कि वे संस्था की छवि को किसी भी विवाद में नहीं घसीटना चाहते। यह वादा उन्होंने दिवंगत रतन टाटा से किया था।
रतन टाटा की सोच के प्रति प्रतिबद्धता
अपने पत्र में मिस्त्री ने लिखा, “मेरी प्रतिबद्धता रतन टाटा की सोच के प्रति है, जिसमें यह जिम्मेदारी भी शामिल है कि टाटा ट्रस्ट्स किसी विवाद में न उलझे। यदि विवाद बढ़ाया गया तो संस्था की साख को गहरी चोट पहुंचेगी।”
मिस्त्री ने यह भी कहा कि उन्होंने यह पत्र नोएल टाटा को इसलिए लिखा ताकि ‘बिना आधार वाली अटकलों पर विराम लगाया जा सके’, जो संस्था के हित में नहीं हैं।
नैतिक गवर्नेंस और पारदर्शिता पर जोर
मेहली मिस्त्री ने कहा कि ट्रस्ट्स में रहते हुए वे रतन टाटा की “एथिकल गवर्नेंस, शांत परोपकार और ईमानदारी” की सोच से प्रेरित रहे। उन्होंने उम्मीद जताई कि आगे भी ट्रस्टी पारदर्शिता, सुशासन और सार्वजनिक हित को केंद्र में रखकर काम करेंगे।
इस्तीफे की पृष्ठभूमि
पिछले सप्ताह यह खबर आई थी कि मेहली मिस्त्री को टाटा ट्रस्ट्स से बाहर कर दिया गया है, क्योंकि उनके लाइफ ट्रस्टीशिप के नवीनीकरण को नोएल टाटा, वेणु श्रीनिवासन और विजय सिंह ने मंजूरी नहीं दी। सोमवार को उन्होंने महाराष्ट्र चैरिटी कमिश्नर के सामने एक केविएट दायर किया है ताकि ट्रस्ट बोर्ड में बदलाव से पहले उन्हें सुना जा सके।
नियमों के अनुसार, टाटा ट्रस्ट्स को किसी भी बोर्ड बदलाव को 90 दिनों के भीतर कमिश्नर से मंजूरी लेनी होती है।
संस्थागत महत्व
टाटा ट्रस्ट्स के पास टाटा संस की 65.9% हिस्सेदारी है, जो टाटा समूह की होल्डिंग कंपनी है। इसीलिए मेहली मिस्त्री का अलग होना संस्थागत स्तर पर बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है।