पाँच साल में 50 प्रतिशत बढ़ेगा कृषि निर्यात
वाणिज्य मंत्रालय का अनुमान है कि भारत और ब्रिटेन के बीच व्यापार समझौते से कृषि उत्पादों और प्रोसेस्ड फूड्स के निर्यात में वर्ष 2030 तक 30-50 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो सकती है। ब्रिटेन के बाजार में भारतीय कृषि उत्पादों के निर्यात में विगत दो वर्षों में 20 प्रतिशत से अधिक का इजाफा हुआ है और पिछले वित्त वर्ष 2024-25 के अंत में यह निर्यात 98 करोड़ डॉलर तक पहुंच गया है।
ब्रिटेन के साथ होने वाले व्यापार समझौते पर एक साल के बाद अमल होगा और वर्ष 2030 तक भारत का कृषि निर्यात ब्रिटेन (India UK Trade Deal) के बाजार में 1.5 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है। अभी ब्रिटेन के बाजार में भारतीय कृषि उत्पादों पर दो प्रतिशत से लेकर 14 प्रतिशत का शुल्क लगता है। अब यह शुल्क शून्य हो जाएगा, जिससे भारतीय कृषि उत्पाद चीन, वियतनाम, ब्राजील, पेरू, मिस्त्र जैसे देशों के उत्पादों से आसानी से मुकाबला कर सकेंगे।
हालांकि निर्यात में बढ़ोतरी दर्ज करने के रास्ते में कई चुनौतियां भी हैं:
दो चुनौतियाँ
- पहली चुनौती: सब्जी के साथ आम, लीची, अंगूर और अन्य फलों को अधिक दिनों तक खाने योग्य कैसे रखा जाए। अधिक समय तक इन्हें खाने योग्य रखने पर ही सब्जी और फल का निर्यात अधिक मात्रा में संभव हो सकेगा।
- दूसरी चुनौती: बिहार, उत्तर प्रदेश जैसी जगहों से कृषि उत्पाद के निर्यात की बड़ी संभावना तो है, लेकिन इन जगहों से सीधे निर्यात करने की सुविधा नहीं है। वहां से पहले मुंबई या कोलकाता तक माल भेजना पड़ता है, जिससे लागत अधिक हो जाती है।
एपीडा की कोशिशें
एपीडा की कोशिश है कि अगले साल तक बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश से सीधे हवाई मार्ग से निर्यात करने की सुविधा विकसित हो जाए। ताकि बिहार से मखाना, लीची और आम तो पूर्वी उत्तर प्रदेश से विभिन्न सब्जी और फल का निर्यात ब्रिटेन में किया जा सके। इससे उनकी लागत कम हो जाएगी और तभी उन्हें फायदा होगा। ऐसी तकनीक विकसित करने पर काम हो रहा है ताकि लीची, आम व अन्य फल को एक माह तक रखा और खाया जा सके।
ब्रिटेन में निर्यात के लिए संभावित उत्पाद और शुल्क
उत्पाद | वर्तमान शुल्क |
---|---|
अंगूर | 8.00% |
प्याज | 4.50% |
प्राकृतिक शहद | 16% |
केला | 16% |
बिस्कुट | 4.50% |
बेकरी उत्पाद | 4.50% |
कीटनाशकों के सही छिड़काव का प्रशिक्षण
एपीडा के अनुसार भारतीय किसानों द्वारा बासमती चावल उत्पादन में इस्तेमाल किए जाने वाले कीटनाशक दवाओं को लेकर यूरोपीय देशों ने चिंता जाहिर की है। इसलिए किसानों को कीटनाशक दवाओं के छिड़काव में ड्रोन के इस्तेमाल और मात्रा की सही समझ का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इस दिशा में एक साल के भीतर समस्याओं का समाधान करने का काम शुरू हो चुका है।