42 साल बाद फिर चढ़ सकेंगे नंदा पर्वत
भारत में हर साल कई धार्मिक यात्राएं आयोजित होती हैं। उन सभी का अपना अलग महत्व होता है। ऐसी ही एक अत्यंत महत्वपूर्ण धार्मिक यात्रा है नंदा राजजात यात्रा, जो उत्तराखंड में हर 12 साल में आयोजित होती है। यह यात्रा एशिया की सबसे कठिन पदयात्राओं में से एक मानी जाती है।
इस यात्रा में श्रद्धालु लगभग 260 किलोमीटर की दूरी 19 से 20 दिनों में पैदल तय करते हैं। वर्ष 2026 में इस यात्रा का आयोजन और भी भव्य रूप में किया जाएगा, जिसके लिए उत्तराखंड सरकार ने तैयारियाँ शुरू कर दी हैं।
दुनिया की सबसे कठिन धार्मिक यात्राओं में एक
नंदा राजजात यात्रा को नंदा देवी राजजात के नाम से भी जाना जाता है। यह यात्रा गढ़वाल और कुमाऊं की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत का प्रतीक है। यह यात्रा विश्व की सबसे लंबी पैदल धार्मिक यात्राओं में गिनी जाती है।
इसमें देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु भाग लेते हैं। इसे हिमालय का 'कुंभ' भी कहा जाता है। यात्रा मां नंदा देवी को उनके ससुराल भेजने की प्रतीकात्मक परंपरा से जुड़ी होती है।
यह यात्रा चमोली जिले के नौटी गांव से शुरू होकर रूपकुंड और होमकुंड होते हुए पूर्ण होती है। यात्रा के दौरान श्रद्धालु घने जंगलों, हिमालयी दर्रों, नदियों और बुग्यालों को पार करते हैं।
क्या है इस यात्रा की विशेषता
- 42 साल बाद फिर पहुंचेगी नंदा पर्वत तक
- 260 किमी की कठिन हिमालयी पदयात्रा
- मां नंदा को ससुराल भेजने की परंपरा
- गढ़वाल और कुमाऊं की सांस्कृतिक पहचान