शेर राइफल: दिसंबर तक पूरी तरह स्वदेशी, सेना को दोगुनी आपूर्ति


शेर राइफल: दिसंबर तक पूरी तरह स्वदेशी, सेना को दोगुनी आपूर्ति

अमेठी में बन रही AK-203 राइफल को अब 'शेर' नाम दिया जाएगा और यह 31 दिसंबर 2025 तक पूरी तरह से स्वदेशी बन जाएगी। 2026 के मध्य से प्रति वर्ष 1.5 लाख राइफलें बनेंगी, जिससे सेना को मिलने वाली आपूर्ति दोगुनी हो जाएगी। रूस के सहयोग से अब तक 48,000 राइफलें पहले ही सेना को दी जा चुकी हैं।

स्वदेशीकरण की दिशा में बड़ी सफलता

भारतीय सेना के लिए रूस के सहयोग से बनाई जा रही एके-203 राइफल अब पूरी तरह भारत में बनेगी और इसे नया नाम 'शेर' मिलेगा। इस राइफल के सभी कल-पुर्जे अब देश में ही बनाए जा रहे हैं।

निर्माण लक्ष्य और गति

दिसंबर 2025 तक पहला शत-प्रतिशत स्वदेशी 'शेर' राइफल तैयार हो जाएगा। जून 2026 से अमेठी फैक्ट्री में हर दिन 600 राइफलें (हर 100 सेकंड में एक) बनेंगी।

सेना को आपूर्ति और निर्यात योजना

अब हर साल 70 हजार की जगह 1.2 लाख शेर राइफलें सेना को मिलेंगी। कुल 6,01,427 राइफलों की आपूर्ति का लक्ष्य 2030 तक पूरा कर लिया जाएगा।

रूस की साझेदारी में बनी अमेठी फैक्ट्री से अगले साल से 30 हजार राइफलें सालाना निर्यात की जाएंगी। पूर्वी एशिया और अफ्रीका के कई देश शेर राइफल खरीदने के इच्छुक हैं। साथ ही भारत के अर्धसैनिक बल और राज्य पुलिस बल भी इसे प्राथमिकता पर लेंगे।

संयुक्त उद्यम और गुणवत्ता मानक

इस निर्माण कार्य को इंडियन-रशियन राइफल प्रोडक्शन लिमिटेड (IRRPL) नामक संयुक्त उद्यम संचालित कर रहा है, जिसमें भारत की हिस्सेदारी 50.5% और रूस की 49.5% है। इसके सीईओ मेजर जनरल एसके शर्मा हैं।

अक्टूबर 2025 तक 70% कल-पुर्जे देश में बनेंगे और दिसंबर 2025 तक 100%। हर राइफल 121 गुणवत्ता परीक्षण और फायर टेस्टिंग से गुजरने के बाद सेना को दी जाएगी। रूस को 'शेर' नाम से निर्यात पर कोई आपत्ति नहीं है।

भारत-रूस रक्षा साझेदारी की दूसरी बड़ी सफलता

ब्रह्मोस मिसाइल के बाद शेर राइफल भारत-रूस की सैन्य साझेदारी का दूसरा बड़ा उदाहरण बन रहा है। इसका उद्देश्य अगले कुछ वर्षों में इसे विश्व की टॉप 5 राइफल कंपनियों में शामिल करना है।




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