निगम चुनाव में एससी-एसटी सीटों का रोटेशन नहीं किया जा सकता, यह सरकार का विशेषाधिकार: कोर्ट
हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने नगर निगम चुनावों को लेकर सरकार के पक्ष में बड़ा फैसला दिया है। कोर्ट ने कहा- एससी और एसटी के लिए सीटों का रोटेशन अनिवार्य नहीं है। यह सरकार का विशेषाधिकार है कि वह किस वार्ड को आरक्षित करे।
इससे पहले सिंगल बेंच ने आदेश दिया था कि वार्डों की आबादी के अनुसार एससी-एसटी की सीटें रोटेशन से तय हों। ऐसा नहीं होगा तो अन्य वर्गों को प्रतिनिधित्व का मौका कैसे मिलेगा। इस फैसले को सरकार ने चुनौती दी थी। सुनवाई जस्टिस विवेक रूसिया और जस्टिस बिनोद कुमार द्विवेदी की बेंच ने की।
मामले का विवरण
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता विभोर खंडेलवाल ने पैरवी की। उन्होंने कहा- इंदौर नगर निगम चुनाव से पहले वार्डों का आरक्षण किया गया था। इसमें 13 एससी और 3 एसटी वार्ड पहले की तरह ही आरक्षित कर दिए गए। यानी, किसी भी वार्ड का बदलाव नहीं हुआ। इससे 1994 के आरक्षण नियम और संविधान के अनुच्छेद 243T का उल्लंघन हुआ।
वार्ड आरक्षण आबादी पर निर्भर करेगा
एससी-एसटी के लिए आरक्षण अनिवार्य है, पर किस वार्ड को आरक्षित किया जाए, यह तय करने का अधिकार सरकार के पास है। हर चुनाव में आबादी की जांच के बाद ही तय होगा कि कौन सा वार्ड आरक्षित हो। इसलिए, यह मानना गलत है कि हर बार रोटेशन होना चाहिए।
ओबीसी सीटों के आरक्षण में रोटेशन लागू किया जा सकता है।