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खाद्य कीमतों पर सतर्कता जरूरी

हाल ही में 22 अगस्त को वित्त मंत्रालय के द्वारा प्रकाशित आर्थिक रिपोर्ट में कहा गया है कि जुलाई 2024 में दक्षिण पश्चिम मानसून में प्रगति के कारण खरीफ की बोआई अच्छी हुई है और खाद्य पदार्थों की महंगाई दर में और कमी आ सकती है। इसी तरह पिछले दिनों 19 अगस्त को रिजर्व बैंक ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा कि यद्यपि देश में बेहतर मानसून, अच्छे मौद्रिक प्रबंधन और सरकार के द्वारा तत्परता से महंगाई नियंत्रण के उपायों से महंगाई घटने का सुकूनदेह परिदृश्य दिखाई दे रहा है, लेकिन अभी भी खाद्य कीमतों पर सतर्कता जरूरी है। इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि महंगाई सरकार की चिंता बनी रही है और अब सरकार ने संकेत दिया है कि महंगाई नियंत्रण के लिए बहुआयामी रणनीति की डगर पर आगे बढती रहेगी। केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि वर्ष 2024-25 के बजट के तहत शीघ्र खराब होने वाले सामान की बाजार में समुचित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी व्यवस्थाएँ सुनिश्चित की गई हैं। बजट के तहत उपभोक्ता मामलों के विभाग को दाम स्थिरीकरण कोष (पीएसएफ) के लिए 10,000 करोड़ रुपये दिए गए हैं। जहाँ इस कोष का उपयोग दाल, प्याज और आलू के बफर स्टॉक को रखने के लिए किया जाएगा। वहीं जरूरी होने पर इन अन्य खाद्य वस्तुओं के बढ़े दामों को नियंत्रित करने के लिए भी इस कोष का इस्तेमाल किया जा सकेगा। उल्लेखनीय है कि 14 अगस्त को राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के मुताबिक थोक महंगाई जुलाई 2024 में घटकर तीन महीने के निचले स्तर 2.04 प्रतिशत पर आ गई। यह जून में 3.36 प्रतिशत थी। खास बात यह भी है कि 12 अगस्त को जारी उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित खुदरा महंगाई के आंकड़ों के अनुसार जुलाई 2024 में खुदरा महंगाई दर घटकर 3.54 फीसदी रह गई है, जबकि जून 2024 में खुदरा महंगाई दर 5.08 प्रतिशत थी। सुकूनदेह स्थिति यह है कि खुदरा महंगाई दर पिछले 5 वर्षों के सबसे कम और रिजर्व बैंक के द्वारा निर्धारित 4 प्रतिशत के लक्ष्य से भी नीचे आ जाने से अर्थव्यवस्था को मजूबती मिलते हुए दिखाई देगी। इसमें कोई दोमत नहीं है कि बेहतर मानसून से खाद्यान्नों, फलों, सब्जियों विशेषतया आलू, प्याज और टमाटर आदि की कीमतों में बड़ी कमी आने से खुदरा महंगाई दर में कमी आई है। पिछले दिनों 8 अगस्त को आरबीआई ने देश में बढ़ती हुई महंगाई को देखते हुए मौद्रिक नीति समीक्षा के तहत रेपो रेट को पहले की तरह 6.5 प्रतिशत पर बरकरार रखा है। ये लगातार 9वीं बार है जब मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक में रेपो रेट को यथावत रखने का फैसला किया गया है। आखिरी बार रेपो रेट में फरवरी 2023 में बदलाव किया गया था। इस मौद्रिक नीति समीक्षा के तहत तेज विकास दर की बजाय महंगाई नियंत्रण को प्राथमिकता दी है। भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि निरंतर आर्थिक विकास को ध्यान में रखते हुए अभी भी महंगाई पर स्पष्ट तरीके से ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है। रिजर्व बैंक और सरकार के समन्वित प्रयासों से महंगाई नियंत्रण के लगातार रणनीतिक कदम जरूरी हैं। केंद्रीय कृषि मंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान के मुताबिक वर्ष 2024-25 के बजट के तहत उपभोक्ता मामलों के विभाग को दाम स्थिरीकरण कोष (पीएसएफ) के लिए जो धनराशि सुनिश्चित की गई है, उससे खाद्य भंडारण से जुड़ी एजेंसियों को धन मुहैया कराया जाएगा ताकि वे उपयुक्त भंडारण बनाने के लिए किसानों के खेत या मंडी से सीधे खरीदारी कर सकें। इसके अलावा नए बजट के तहत इस वर्ष खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग के लिए खाद्य भंडारण और वेयरहाउसिंग के लिए ऋणों की राशि दोगुनी करके 50,000 करोड़ रुपये सुनिश्चित की गई है। निसंदेह नए बजट के तहत कई ऐसे प्रावधान है जिनसे अधिक खाद्यान्न उत्पाद और महंगाई नियंत्रण को प्रोत्साहन मिलेगा। प्राकृतिक खेती पर भारी प्रोत्साहन सुनिश्चित किए गए हैं और आगामी दो वर्षों में एक करोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। देशभर में 10 हजार बायो इनपुट सेंटर बनाए जाएंगे, जहाँ से प्राकृतिक खेती की गतिविधियां संचालित होंगी। मौसम की मार के कारण खराब होने वाली फसलों के लिए समर्थन राशि बढ़ाई जाने से कृषि को नया प्रोत्साहन मिलेगा। नए बजट में जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने, दलहन-तिलहन की पैदावार बढ़ाकर और किसानों की आय बढ़ाने, बीज की समस्या के निराकरण और मुख्य फसलों की उत्पादकता प्रभावित होने जैसे मामलों की चुनौतियों को कम करने के साथ-साथ कृषि शोध के विकास के लिए ज्यादा प्रावधान किए हैं। गौरतलब है कि 11 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई दिल्ली में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) परिसर के खेतों में जाकर 61 फसलों की 109 नई एवं उन्नत किस्में जारी करते हुए कहा कि इनसे देश में कम जमीन में अधिक पैदावार लेने और किसानों की आय बढ़ाने में मदद मिल सकेगी । इससे महंगाई से भी बचाव होगा। इसमें कोई दोमत नहीं है कि सरकार को इस वर्ष जो बेहतर मानसून विरासत में मिला है, उससे भी महंगाई में और कमी आएगी। पूरे देश के कोने-कोने में बेहतर मानसून के लाभ दिखाई देने लगे है। कृषि मंत्रालय ने 12 अगस्त को खरीफ फसलों का रकबा बढ़ने संबंधी रिपोर्ट में कहा है कि चालू खरीफ सीजन में अब तक खरीफ फसलों की बोआई 980 लाख हेक्टेयर के स्तर पर पहुँच गई है, जो पिछले साल की समान अवधि में 966 लाख हेक्टेयर ही थी। इस साल अच्छे मानसून से दाल, तिलहन और अनाज का उत्पादन बढ़ेगा और इनकी सप्लाई बढ़ने से इनकी कीमतें कम होंगी। बेहतर मानसून से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी जिससे ग्रामीण इलाके में खपत बढ़ेगी। निश्चित रूप से रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति, सरकार के वित्तीय नियंत्रण और बेहतर मानसून से जिस तरह महंगाई में कमी आई है, अब इसे नियंत्रित रखने के साथ-साथ ग्रामीण भारत की आर्थिक ताकत में इजाफा करने के लिए कुछ अहम बातों पर ध्यान दिया जाना जरूरी होगा। इस समय ग्रामीण भारत में जल्द खराब होने वाले ऐसे कृषि उत्पादों की आपूर्ति श्रृंखला बेहतर करने पर प्राथमिकता से काम करना होगा, जिनकी खाद्य महंगाई के उतार-चढ़ाव में ज्यादा भूमिका होती है। ऐसे में सरकार को खाद्य उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ कृषि उपज की बर्बादी को रोकने के बहुआयामी प्रयासों की कारगर रणनीति पर आगे बढ़ना होगा। हम उम्मीद करें कि अगस्त 2024 में जिस तरह खुदरा उपभोक्ता महंगाई रिजर्व बैंक के द्वारा निर्धारित चार फीसदी के लक्ष्य से भी कम है, उसी तरह सरकार भविष्य में भी खुदरा महंगाई दर को पूर्णातया नियंत्रित रखने के लिए बहुआयामी प्रयास करेगी। हम उम्मीद करें कि सरकार नए दाम स्थिरीकरण कोष तथा खाद्य भंडारण और वेयरहाउसिंग के लिए किए गए प्रभावी बजट आवंटनों के कारगर उपयोग पर शुरुआत से ध्यान देगी। साथ ही सरकार कृषि प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल, खाद्य पदार्थों की बरबादी को कम करने, कृषि में मशीनीकरण को बढ़ाए जाने, जलवायु अनुकूल कृषि-खाद्य प्रणाली अपनाएँ जाने, अधिक ग्रामीण कच्ची सड़कों को मंडियों से जोड़ने, जैसी नीतिगत प्राथमिकताओं के साथ-साथ आपूर्ति श्रृंखला में सुधार से खाद्य वस्तुओं की महंगाई को नियंत्रित रखने के कारगर प्रयासों की डगर पर लगातार आगे बढ़ेगी ।

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