Shifts in Higher Education: Rise in Reserved Category Students


उच्च शिक्षा संस्थानों में बदलती तस्वीर: आरक्षित वर्ग के छात्रों का प्रभुत्व

लंबे समय से यह माना जाता रहा है कि देश भर के कॉलेज और विश्वविद्यालयों में सामान्य वर्ग के छात्रों का दबदबा है। हालांकि, पिछले दशक में एक बड़ा बदलाव आया है और उच्च शिक्षा में आरक्षण का असर स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। परिणामस्वरूप, आरक्षित वर्ग के छात्रों ने कॉलेज और विश्वविद्यालयों में नामांकन के मामले में सामान्य वर्ग के छात्रों को पीछे छोड़ दिया है। अब कॉलेज और विश्वविद्यालयों में 100 में से 60 से अधिक छात्र अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी) से हैं।

आईआईएम उदयपुर के सेंटर फॉर डेवलपमेंट पॉलिसी एंड मैनेजमेंट द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार, 2010-11 में एससी, एसटी और ओबीसी छात्रों का संयुक्त नामांकन हिस्सा 43.1% था, जो 2022-23 में बढ़कर 60.8% हो गया। 2023 में आरक्षित वर्ग के छात्रों का नामांकन सामान्य वर्ग के छात्रों से 95 लाख अधिक रहा। वहीं, सामान्य वर्ग के छात्रों का नामांकन में हिस्सा 2011 में 57% था, जो 2023 में गिरकर 39% रह गया।

इस अध्ययन में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के छात्रों की संख्या भी शामिल की गई है। यह अध्ययन 13 वर्षों के ऑल इंडिया सर्वे ऑफ हायर एजुकेशन (AISHE) के आंकड़ों पर आधारित है। शोधकर्ताओं ने 2010-11 से 2022-23 तक की AISHE रिपोर्ट का विश्लेषण किया, जिसमें 60,380 संस्थान और 4.38 करोड़ छात्र शामिल हैं। इस विश्लेषण से यह सामने आया कि सरकारी संस्थानों में एससी/एसटी/ओबीसी छात्रों का नामांकन हिस्सा 62.2% और निजी संस्थानों में 60% है।

यह स्पष्ट रूप से बताता है कि शिक्षण संस्थानों में छात्रों की सामाजिक संरचना में बदलाव पूरे देश में फैल चुका है। रिपोर्ट के अनुसार, कुल नामांकन में सामान्य वर्ग के छात्रों की संख्या साल दर साल घट रही है, और वे आरक्षित वर्ग के छात्रों से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना कर रहे हैं। आरक्षित वर्ग के छात्र अब सामान्य सीटों पर भी योग्यता के आधार पर दाखिला ले रहे हैं। यह रिपोर्ट भारत की उच्च शिक्षा में छात्रों की सामाजिक संरचना के बारे में लंबी चली आ रही धारणाओं को तोड़ती है।

प्रोफेसर वेंकटरमण कृष्णमूर्ति की रिपोर्ट में पूर्व मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई के उस बयान का भी उल्लेख किया गया है, जिसमें उन्होंने एससी और एसटी वर्ग के लिए भी क्रीमी लेयर व्यवस्था लागू करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा था कि अगर आरक्षण का फायदा बार-बार एक ही परिवार को मिलता रहेगा तो एक वर्ग के भीतर ही एक उपवर्ग का निर्माण हो जाएगा। आरक्षण उन लोगों तक पहुंचना चाहिए, जिन्हें इसकी सच्ची आवश्यकता है। AISHE के आंकड़ों से यह स्पष्ट हुआ है कि अब उच्च शिक्षा में एससी, एसटी और ओबीसी छात्रों के लिए अवसरों की उपलब्धता कोई मुद्दा नहीं है, बल्कि यह औसत से ऊपर है।

अब ध्यान इस पर होना चाहिए कि क्रीमी लेयर के दायरे में आने वाले लोग अपने से कमजोर वर्ग के लोगों के अवसरों को न छीन लें।

अध्यान के निष्कर्ष:

वर्ष आरक्षित वर्ग का नामांकन हिस्सा सामान्य वर्ग का नामांकन हिस्सा
2010-11 43.1% 57%
2022-23 60.8% 39%
2023 95 लाख अधिक आरक्षित वर्ग के छात्रों से कम




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