21 जून-प्रदेश के समस्त कॉलेजों में विद्यावन विकसित करने के निर्देश जारी किए गए।

उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा एवं आयुष मंत्री श्री इन्दर सिंह परमार के मार्गदर्शन पर महाविद्यालयीन विद्यार्थियों में पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाने और उनमें स्वास्थ्य के प्रति सकारात्मक भाव उत्पन्न करने को लेकर उच्च शिक्षा विभाग ने "विद्यावन" योजना के रूप में नवाचारी पहल की है। उच्च शिक्षा विभाग ने प्रदेश के समस्त शासकीय, अशासकीय एवं अनुदान प्राप्त महाविद्यालयों में "विद्यावन" विकसित कर उसमें वृक्षारोपण किए जाने के संबंध में निर्देश जारी किए हैं। इसके अनुसार समस्त महाविद्यालयों को संस्था परिसर में "विद्यावन" के लिए उपयुक्त भूमि का चयन करना होगा, महाविद्यालय में भूमि उपलब्ध न होने की स्थिति में स्थानीय प्रशासन से समन्वय कर संस्था परिसर के निकट भूमि की उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी। महाविद्यालय के एनसीसी, एनएसएस के प्रभारी, क्रीडाधिकारी, वरिष्ठ प्राध्यापक, वन विभाग के प्रतिनिधि, स्थानीय गैर सरकारी संस्थाओं के प्रतिनिधि, स्थानीय बैंक प्रतिनिधि, समाजसेवी संस्था के प्रतिनिधि तथा छात्र-छात्राओं को शामिल करते हुए एक समिति गठित की जायेगी, जो "विद्यावन" विकसित करने एवं वृक्षारोपण योजना के निष्पादन का कार्य करेगी। वन विभाग से समन्वय कर इसे विकसित करने के लिये चिन्हांकित/आवंटित भूमि की फेंसिंग तथा पौधों की सुरक्षा के लिये 'ट्री गार्ड" की व्यवस्था करने के निर्देश दिए गए है। इसके लिए स्थानीय बैंक से समन्वय कर उनके कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) मद अथवा महाविद्यालय की जनभागीदारी निधि का नियमानुसार उपयोग करने को कहा गया है। वृक्षारोपण में महाविद्यालयों के छात्र-छात्राओं की महती भूमिका सुनिश्चित कराने के लिए उनके व्यक्तिगत महत्व के दिवसों जैसे उनके जन्मदिन आदि पर उन्हें वृक्षारोपण करने, उनके रखरखाव, निगरानी के लिये प्रोत्साहित करने को भी कहा गया है। वृक्षों के वृद्धि एवं रखरखाव की जवाबदारी सुनिश्चित करने के लिए एन.एस.एस. और एन.सी.सी. के साथ-साथ संस्था के छात्र-छात्राओं की एक समिति गठित करने के लिए भी निर्देशित किया गया हैं।

वन विभाग से समन्वय कर 'विद्यावन' विकसित करने के लिये वृक्षों की रोपण योजना तथा रोपित किये जाने वाले वृक्षों जैसे- नीम, पीपल, करंज, मौलश्री, गूलर, इमली, महूआ इत्यादि वृक्षों की प्राथमिकता देने को कहा गया है। इनके अतिरिक्त स्वाभाविक रूप से स्थानीय जलवायु, मिट्टी और पारिस्थितिक परिस्थितियों के अनुकूल, ज्यादा ऑक्सीजन उत्सर्जित करने वाले तथा फलदार देशी प्रजातियों का भी रोपण करने के निर्देश दिए गए हैं। समस्त क्षेत्रीय अतिरिक्त संचालक द्वारा इस कार्ययोजना की समय समय पर समीक्षा की जायेगी।

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