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यकीनन कोविड-19 के बाद माइक्रोबायोलॉजी में करियर के मौके तेजी से बढ़ रहे हैं। माइक्रोबायोलॉजी अर्थात सूक्ष्मजैविकी उन सूक्ष्मजीवों का गहन अध्ययन है, जो एककोशिकीय अथवा सूक्ष्मदर्शीय कोशिका समूह जंतु होते हैं। सामान्य बोलचाल की भाषा में कहें तो माइक्रोबायोलॉजी उन सजीवों का गहन एवं विस्तृत अध्ययन है, जो कि नग्न आँखों (नेकेड आई) से दिखाई नहीं देते हैं। चूँकि माइक्रोबायोलॉजी बहुत विस्तृत विज्ञान है इसलिए इसमें विषाणु (वायरस) विज्ञान, कवक (फंगस) विज्ञान, परजीवी (पैरेसाइट) विज्ञान, जीवाणु (बैक्टीरिया) विज्ञान तथा कई अन्य शाखाएँ सम्मिलित हैं। चूँकि विषाणु को स्थायी तौर पर जीव अथवा प्राणी नहीं माना जाता है, फिर भी माइक्रोबायोलॉजी के अन्तर्गत इनका भी अध्ययन किया जाता है। यह भी पूर्णतः सत्य है कि अभी तक हमने पूरी पृथ्वी के सूक्ष्मजीवों में से केवल एक प्रतिशत का ही अध्ययन किया है तथा जीव विज्ञान की अन्य शाखाओं, जैसे जंतु विज्ञान या पादप विज्ञान की अपेक्षा सूक्ष्मजैविकी अपने अति प्रारम्भिक चरण में है। इसलिए यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस क्षेत्र में करियर के कितने उजले अवसर हैं।
माइक्रोबायोलाजिस्ट की बढ़ती अहमियत
वर्तमान समय में माइक्रोबायोलाजिस्ट (सूक्ष्मजैव वैज्ञानिक) की जरूरत कई स्तरों पर होती है। जिस तरह से दुनिया भर में कोरोना की तरह नई-नई बीमारियाँ सामने आ रही हैं, उसे देखते हुए कई माइक्रोब्स अर्थात बीमारी फैलाने वाले सूक्ष्म जीवाणुओं का अब भी पता लगाया जाना बाकी है। इसलिए इस क्षेत्र में अवसरों की कमी नहीं है। गौरतलब है कि माइक्रोबायोलॉजिस्ट सूक्ष्म जीवों के इंसानों, पौधों और जानवरों पर पड़ने वाले पॉजिटिव और निगेटिव प्रभाव को खोजते हैं। इसके अलावा जीन थेरेपी तकनीक के जरिये वे इंसानों में होने वाले सिस्टिक फिब्रियोसिस, कैंसर जैसे दूसरे जेनेटिक डिसऑर्डर्स के बारे में भी पता लगाते हैं तथा उनका निदान खोजते हैं। सूक्ष्म जीवों की मदद से ही दवाओं का निर्माण किया जाता है। एंथ्रेक्स और सार्स जैसी खतरनाक बीमारियाँ भी इन सूक्ष्मजीवों यानी माइक्रोब्स की ही देन है। माइक्रोब्स से होने वाले हानि और लाभ के अलावा संरचना और वातावरण में इनकी भूमिका पर भी माइक्रोबायोल़ॉजी में अध्ययन किया जाता है। कृषि एवं औद्योगिक विकास में उनके उपयोग का भी अध्ययन किया जाता है। माइक्रोबायोलाजिस्ट बीमारियों की वजह जानने का प्रयास करते हैं तथा बीमारियों की रोकथाम हेतु मेडिसिन भी डेवलप करते हैं।
माइक्रोबायोलॉजी में करियर के विविध आयाम
नए दौर में माइक्रोबायोलॉजी की फील्ड में अपार संभावनाएँ हैं और माइक्रोबायोलॉजिस्ट की डिमांड दिनों दिन बढ़ती ही जा रही है। ये ऐसा विषय है जिसमें स्वास्थ्य, पर्यावरण, कृषि के अलावा कई क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ माइक्रोबायोलॉजी का उपयोग सबसे ज्यादा होता है। माइक्रोबायोलाजिस्ट के रूप में आप किसी प्रसिद्ध साइंटिस्ट के साथ रिसर्च वर्क कर सकते हैं। इसके अलावा क्लीनिक, यूनिवर्सिटीज, निजी या सरकारी क्षेत्र, फार्मास्यूटिकल, डेयरी प्रोडक्ट्स आदि क्षेत्रों से जुड़ सकते हैं। इस क्षेत्र में युवा, दवा कंपनियों, लेदर एवं पेपर उद्योग, फूड प्रोसेसिंग, बायोटेक तथा बायोप्रोसेस संबंधी उद्योगों, प्रयोगशालाओं एवं अस्पतालों, जनस्वास्थ्य के कामों में लगे गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) आदि में भी जा सकते हैं। बायोटेक एवं बायोप्रोसेस संबंधी उद्योग के अलावा विभिन्न मेडिकल कॉलेजों में भी अच्छे रोजगार अवसर हैं।
यह बात भी महत्वपूर्ण है कि आप इंडस्ट्रियल माइक्रोबायोलॉजिस्ट, मेडिकल माइक्रोबायोलॉजिस्ट, माइकोलॉजिस्ट, बायोकेमिस्ट, बायोटेक्नोलॉजिस्ट, सेल बायोलॉजिस्ट, इम्युनोलॉजिस्ट, माइक्रोबायोलॉजिस्ट बैक्टीरियोलॉजिस्ट, एनवॉयर्नमेंटल माइक्रोबायोलॉजिस्ट, फूड माइक्रोबायोलॉजिस्ट, वायरोलॉजिस्ट, इम्ब्रियोलॉजिस्ट आदि के रूप में करियर बना सकते हैं। फार्मास्युटिकल के रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट डिपार्टमेंट में माइक्रोबॉयोलॉजी के जानकारों के लिए अवसरों की कमी नहीं है। अगर लेखन में रुचि है, तो साइंस राइटर के तौर पर भी अच्छा करियर बनाया जा सकता है। इसके साथ ही कॉलेज या यूनिवर्सिटी में पढ़ाने का मौका भी है। कॉलेज में पढ़ाने के लिए मास्टर्स डिग्री के साथ सीएसआईआर-नेट क्वालिफाइड होना जरूरी है। जबकि डॉक्टरेट (पीएचडी) के बाद ऑप्शंस कई गुना बढ़ जाते हैं। विदेश की बात करें, तो नासा जैसे स्पेस ऑर्गेनाइजेशन में माइक्रोबायोलॉजिस्ट की बहुत डिमांड है। एक माइक्रोबायोलॉजिस्ट कुछ नया इनोवेट करने पर उसका पेटेंट करा सकता है और फिर अपने प्रोडक्ट को बेचकर बड़ी धनराशि कमा सकता है। एक माइक्रोबायोलॉजिस्ट अपनी स्वतंत्र लैबोरेट्री भी शुरू कर सकता है।
माइक्रोबायोलॉजी में करियर की स्किल्स
माइक्रोबायोलॉजी में करियर बनाने के लिए उम्मीदवार के पास बायोलॉजी से संबंधित दक्षता होना जरूरी है। इस फील्ड में सफलता हेतु इनोवेटिव आइडियाज लाभप्रद होते हैं। इस हेतु इमैजिनेशन पॉवर स्ट्रॉन्ग होना जरूरी है। इसके अलावा रिसर्च और नई टेक्नोलॉजी में भी दक्षता जरूरी है।
माइक्रोबायोलॉजी में करियर के लिए शैक्षणिक योग्यता
माइक्रोबायोलॉजी में करियर के लिए स्टूडेंट्स को फिजिक्स, केमिस्ट्री, मैथ्स या बायोलॉजी के साथ 12वीं उत्तीर्ण होना चाहिए। बायोलॉजी विषय से 12वीं उत्तीर्ण करने के बाद आप माइक्रोबायोलॉजी के विभिन्न कोर्सों में एडमिशन ले सकते हैं। इनमें बीएससी माइक्रोबायोलॉजी, बीएससी इंडस्ट्रीयल व बीएससी ऑनर्स इंडस्ट्रियल माइक्रोबायोलॉजी, बीएससी मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी, एमएससी तथा एमएससी ऑनर्स माइक्रोबायोलॉजी, एमएससी मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी आदि प्रमुख हैं। वहीं, पोस्टग्रेजुएशन करने के लिए माइक्रोबायोलॉजी या लाइफ साइंस में बैचलर्स डिग्री जरूरी है। माइक्रोबायोलॉजी में जो स्पेशलाइजेशन कोर्स उपलब्ध हैं, वे हैं- अप्लायड माइक्रोबायोलॉजी, मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी, क्लीनिकल रिसर्च, बायोइंफॉर्मेटिक्स, मॉलिक्यूलर बायोलॉजी, बायोकेमिस्ट्री, फोरेंसिक साइंस आदि। जो लोग स्वतंत्र रूप से रिसर्च करना चाहते हैं, वे पीएचडी करने के बाद ऐसा कर सकते हैं। इसके अलावा आप माइक्रोबायल फिजियोलॉजी, माइक्रोबायल जेनेटिक्स, मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी, वेटनरी माइक्रोबायोलॉजी, एनवायर्नमेंटल माइक्रोबायोलॉजी, इवोल्यूशनरी माइक्रोबायोलॉजी, इंडस्ट्रियल माइक्रोबायोलॉजी, फूड माइक्रोबायोलॉजी, फार्मास्यूटिकल माइक्रोबायोलॉजी और ओरल माइक्रोबायोलॉजी जैसे स्पेश्लाइजेशन वाले कई अन्य कोर्स भी उपलब्ध हैं। जिनमें रोजगार की चमकीली संभावनाएँ हैं।
माइक्रोबायोलॉजी के विभिन्न रोजगारोन्मुखी कोर्स कहाँ से करें
मध्यप्रदेश सहित देश के विभिन्न भागों में स्थित विभिन्न कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में माइक्रोबायोलॉजी के विभिन्न कोर्स उपलब्ध हैं आप अपनी रुचि, योग्यता व क्षमता से उपयुक्त संस्थान व उपयुक्त कोर्स का चयन कर माइक्रोबायोलॉजी सेक्टर में करियर की डगर पर आगे बढ़ सकते हैं और कोविड-19 के बाद बदली हुई दुनिया में अधिक और अच्छे मौके अपनी मुठ्ठियों में कर सकते हैं।
डॉ. जयंतीलाल भंडारी ( विख्यात करियर काउंसलर) 111, गुमास्ता नगर, इंदौर-9 (फोन- 0731 2482060, 2480090)